Saturday, March 20, 2010

सब माया का असर है

-वि‍जय कुमार झा
अच्छा ही हुआ ‘माया’ की माला पर शुरू हुआ शोर जल्दी ही थम गया। एक बार फि‍र साबि‍त हुआ कि‍ ‘माया’ की महि‍मा अपरंपार है और माया में बड़ी ताकत है। इसके आगे कोई ज्याकदा समय तक टि‍क नहीं सकता। राजनीति‍क वि‍रोधी भी नहीं। इसकी ठोस वजह भी है। वि‍रोधी होंगे माया के, ‘माया’ का वि‍रोधी भला कौन होता है। पटना में तो यह साफ दि‍ख भी गया। माया की देखादेखी जद-यू के एक ‘माननीय’ ने ‘माया’ की माला क्या पहनी, सब ने माला के तार-तार कर दि‍ए। जबकि‍ एजाज भाई की माला तो माया की माला की तुलना में पासंग भी नहीं थी। फि‍र भी ऐसा हुआ। हो भी क्यों न, मुफ्त में जि‍तनी माया हाथ लग जाए, वही क्या कम है?

हमें तो बसपा वालों का कायल होना चाहि‍ए। उनके त्याीग और धीरज धरने की क्षमता का मैं तो मुरीद हो गया। 60-65 कि‍लो की माला और वह भी कि‍सी ऐरी-गैरी चीज की नहीं, बल्किन‍ चि‍त्ती को शांत करने वाले करारे नोटों की। और नोट भी सौ-पचास के नहीं, केवल हजार-हजार के। सोचि‍ए, कि‍सी गरीब के हाथ लग जाए तो उसकी खुशी का ठि‍काना रहेगा क्यास? नहीं न? इसके बावजूद बसपाई अनुशासि‍त रहे। माला की जि‍तनी झलक मि‍ल गई, उसी से संतुष्टह हो कर घर लौट गए। राजनीति‍क समुदाय में ऐसा अनुशासन दुर्लभ है। संसद का नजारा तो हम रोज देखते ही हैं। यह तो रही अनुशासन की बात। बात वि‍रोध की हो रही थी। वि‍रोधि‍यों में दम नहीं रहा तो इसकी एक मात्र वजह यही नहीं थी कि‍ ‘माया’ के दीवाने सभी हैं। बात यह भी रही कि‍ वि‍रोध की कोई ठोस वजह नहीं थी। वि‍रोधी उन्हेंय दलि‍त वि‍रोधी बता रहे थे। पर वे समझ नहीं पाए कि‍ मायावती ने 21 लाख (जैसा कि‍ पार्टी और सरकार में उनके मातहत नसीमुद्दीन सि‍द्दीकी ने बताया) या पांच करोड़ (आयकर वि‍भाग के अनुमान के मुताबि‍क) रुपये की माला पहन कर कोई दलि‍त वि‍रोधी काम नहीं कि‍या। उल्टार उन पर एहसान कि‍या। इतनी ‘माया’ संभालने की उनमें हैसि‍यत नहीं देख कर उसे संभालने की एकीकृत व्यवस्था के तहत अपने गले में टांग लि‍या। कानून-व्यवस्था की खराब हालत के मद्देनजर भी नोटों की सुरक्षा के लि‍हाज से यह एक सराहनीय कदम था।
कुछ वि‍रोधी तर्क दे रहे थे कि‍ मायावती को अपने गरीब मतदाताओं के खाने-पीने की चिंता नहीं है, उन पर बस ‘माया’ की हनक दि‍खाने की सनक सवार है। यह तर्क देने वालों ने अगर अपनी आंखें और दि‍माग की खि‍ड़कि‍यां खुली रखी होतीं तो उन्हेंआ महसूस होता कि‍ इस तर्क में मुंह की फूंक झेलने का दम भी नहीं है। जि‍स रैली में कि‍ए गए कारनामे के चलते मायावती का नाम ‘मालावती’ पड़ गया, वहां बसपा के मतदाताओं के लि‍ए खाने-पीने का भरपूर इंतजाम था। फि‍र कोई कैसे कह सकता है कि‍ मायावती को उनके गरीब मतदाताओं की चिंता ही नहीं है। आखि‍र हजार रुपये के नोट के बदले कि‍तना खाना मि‍लेगा और वह भी इस महंगाई में। वैसे भी, महंगाई बढ़ाने में तो मायावती का कोई रोल नहीं है। वह पहले ही बता चुकी हैं कि‍ यह केंद्र सरकार की करतूत है। इसके बावजूद केंद्र वाले ही यह आरोप लगा रहे थे कि‍ मायावती को गरीबों की चिंता नहीं है। और तो और वि‍रोधि‍यों ने दलील रखी कि‍ बरेली जल रहा है और मायावती नोटों का हार पहन कर इतरा रही हैं। अब उन्हेंर कौन समझाए कि‍ आग (भले ही पेट की नहीं हो) बुझाने के लि‍ए भी नोटों की जरूरत पड़ती है।
राजनीति‍ के खि‍लाड़ी होकर इतना भी नहीं समझ पाए। आश्चुर्य है। शायद सब माया का ही असर है।

Friday, December 18, 2009

...तो क्‍या इसी से हो जाएगा विकास

-विजय कुमार झा

नौ दिसंबर, 2009 की आधी रात को आलाकमान खुश हुआ और टीआरएस प्रमुख के. चंद्रशेखर राव की 11 दिन की तपस्‍या (अनशन) सफल हुई। केंद्रीय गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने कहा- तथास्‍तु! इसी के साथ 29वें राज्‍य के रूप में तेलंगाना का वजूद बनता दिखने लगा। मेरा पत्रकार वाला दिमाग कुलबुलाने लगा। तुरंत सवाल कौंधा कि तेलंगाना बन गया तो कितना कुछ बदल जाएगा।

सबसे पहले तो यही दिमाग में आया कि जीके की सभी किताबें बदल जाएंगी। उनमें देश के कुल राज्‍यों की संख्‍या 28 की जगह 29 हो जाएगी। एक अदद राजधानी बनेगी। एक विधानसभा होगी, जहां 119 विधायकों के लिए राजनीति करने का पूरा इंतजाम होगा। कुछ नेताओं को मुख्‍यमंत्री की कुर्सी पर बैठने का सपना साकार करने का मौका मिलेगा। अफसरों के लिए भी तरक्‍की के नए द्वार खुलेंगे। एक राज्‍य बन जाने से और कुछ बदले या नहीं, इतने बदलाव तो पक्‍के हैं।

इसके अलावा अलग राज्‍य बन जाने से तेलंगाना क्षेत्र की 3.1 करोड़ जनता का भी तो कुछ भला होगा? उनके संसाधनों पर उनका अपना हक होगा और उनकी तरक्‍की भी तो होगी? पर क्‍या वाकई राज्‍य बन भर जाने से जनता का भला हो जाता है? अगर ऐसा होता तो झारखंड या छत्‍तीसगढ़ के लोगों की बदहाली खत्‍म नहीं हो गई होती? नौ साल में नेताओं की अमीरी जितनी बढ़ी है, जनता उतनी ही गरीब हुई है वहां।

कुछ लोग कहते हैं कि छोटे राज्‍य विकास के लिए जरूरी हैं। अगर ऐसा है तो हर गांव-शहर को ही राज्‍य के रूप में क्‍यों न बदल दिया जाए? विकास का यही मॉडल है फिर तो संयुक्‍त परिवार में रहने वाले किसी व्‍यक्ति के विकास की कल्‍पना ही मुश्किल होगी। मेरी राय में जो लोग विकास का हवाला देकर राज्‍यों के बंटवारे को जायज ठहराते हैं, वे समाज की उस औरत की तरह हैं जो लोगों को परिवार से अलग होने के लिए भड़काती रहती है। सच तो यह है कि अगर संयुक्‍त परिवार में किसी का विकास नहीं हो रहा है तो उसके लिए परिवार का नेतृत्‍व जिम्‍मेदार है। परिवार के मुखिया का दायित्‍व है कि वह कुशल प्रबंधन का परिचय देते हुए हर सदस्‍य को उसकी क्षमता और जरूरत के हिसाब से आगे बढ़ने के लिए संसाधन और माहौल मुहैया कराए। आखिर हर जगह छोटे राज्‍यों का आंदोलन संसाधनों के गलत बंटवारे की बुनियादी झगड़े से ही तो शुरू हुआ है। लिहाजा विकास के लिए छोटे राज्‍यों से ज्‍यादा जरूरी है सक्षम और समर्पित नेतृत्‍व। हां यह बात जरूर है कि परिवार छोटा हो तो उसे बांधना अपेक्षाकृत आसान होता है। पर इसका यह मतलब नहीं कि परिवार को बांट दिया जाए। इसका रास्‍ता सत्‍ता और अधिकारों के विकेंद्रीकरण से निकल सकता है। नेता की नीयत में खोंट नहीं हो और जनता भी सजग-ईमानदार हो तो पूरा भारत भी एक राज्‍य के रूप में चीन से आगे निकल सकता है।

Sunday, November 29, 2009

Asanas for Thyroid:

Sarvangasana
Sarvangasana
sah-LOM-bah sar-van-GAHS-anna
salamba supported sarvanga whole
Overview
Sarvangasana is sometimes called Salamba Sarvangasana. This may be more accurate since you are actually supporting (salamba) the inversion with your arms and shoulders. The savanga or whole aspect is accurate because the asana works your entire body. While it is generally considered a seventh chakra pose as you are nourishing your brain with an increase in blood flow, you are also helping activate the fifth chakra, which is your throat or Visuddha charka. For people who have not done a lot of inversions, it may seem a little funny that you are turning yourself upside down. This flipping of your physical body can have a dramatic impact on your outlook on life or any specific problem you are facing. You can literally re-calibrate your mind and when you rise start with a fresh perspective. It is not uncommon for many yogis to remain in inversions for long periods of time (as much as an hour), although we do not recommend that for your vinyasa practice.

Preparation and Pose Tips
Let us state in bold words Never turn your head once you are in this pose because you can injure your neck!
To begin, tuck your shirt in (unless you do not mind having it flop down).
If you work with a partner, first place a blanket with the folded edge towards your head; shoulders right up against the folded edge. Now strap the arms behind you, just above the elbows. Keep your hands down by your side with the buckle on the outside of the arms. Lie back down, with shoulders resting on the blanket, head resting on the mat, bend your knees and draw your heels towards the buttocks, your arms resting on the side. Draw your shoulder blades toward the spine and down (a shoulder roll). Bend your knees. Engage the abdominals and draw your knees towards your chest. Exhale and place your hands on your lower back. Your fingers point towards the ceiling. Now straighten your legs and point your toes upward. You can feel the sense of an upside-down Tadasana in this pose. Come out, and down into plow pose.
We will also describe coming into the Shoulder Stand from Halasana or Plow Pose. In fact, a nice sequence is Plow, into Should Stand then back into Karnapidasana or Spider, back into Shoulder Stand and then down. From Halasana (Plow) move your arms and hands up from the floor toward your back (photo Sarvangasana prep 1). You are still resting mostly on your shoulders and upper arms (your neck is off the ground). Check and make sure your should blades are flat on the floor. If you pull your hands down a little towards your shouldblades the pose will generally be straighter. Pull your elbows gently in towards each other; and lay your hands flat on your lower back, like two books. This is your support. (photo Sarvangasana prep 2). Now raise your feet up above your head. Your eyes look up toward your toes. (photo Sarvangasana final). You can move back into Halasana or come out of the pose on an exhale, slowly brining your legs to the ground.

Benefits
As was mentioned, the chin lock stimulates your throat chakra which helps your thyroid gland produce thyroxin. This pose also reverses the pull of gravity down on your internal organs as it removes congestion in your liver and spleen. It can be good as a prevention for varicose veins. The blood flow nourishes your heart, lungs and brain, which can assist with headaches.

Advanced or Partner
There are a few little tips that you can incorporate. Instead of having your toes point straight up, try pulling them down to be parallel with your head. This increases the stretch for your feet. From the feet-straight-up position you can try either:
A. moving your legs apart and holding
B. placing the soles of your feet together for an inverted Baddhakonasana
C. lowering one leg to the ground behind your head, holding; then moving it back up as your other leg goes down
When you come out of the pose try holding your feet a few inches above the ground for several breaths. This really works your abdomen muscles.
If you are feeling sluggish you can use Sarvangasana for a little energy boost. Obviously the blood moving to your brain helps. Try this: If you have practiced pranayama or breathing work get into the full pose. Now, after an exhale, keep the breath out, locking in your uddiyana bandha, or belly-button. Hold the exhale just until it becomes slightly uncomfortable. Breath naturally and then repeat. Holding the air out during this inversion will increase your natural flow of energy or prana throughout your body.

Chakra
Sarvangasana is a seventh chakra pose.

Precautions
High blood pressure, neck issues, pregnancy. We suggest you don�t this pose initially without some initial guidance from a qualified instructor.

Timing
Hold for as long as the pose is comfortable, usually ten breaths.

Recovery and Counterpose
A good counterpose is Matsyasana, or Fish.

Naukasana

Steps
1.Lie down straight on the abdomen with forehead resting on the floor.
2.Keep your feet together and arms extended forward with palms on the floor. While inhaling, raise your arms, head, neck, shoulders, trunk and legs simultaneously as high as possible.

3.Keep your elbows and knees straight. Balance the entire weight of your body on the navel. Maintain this posture as long as possible.
4.While exhaling, bring down your legs, hands and forehead to the ground. Then relax in Makarasana.
Benefits & Precautions:
Naukasana improves the functioning of the lungs, is useful in treating disturbed navel and relieves body stiffness and back pain. It also reduces excess fat from the abdomen. It improves digestion and relieves constipation. Hernia and Ulcer patients should not do this asana.

Uttanpadasana
Raised Foot Posture and gas trouble
Uttanpadasana is also called Raised foot pose, Raised feet Pose, or Uttana Pada Asana. This is a classical asana (Yoga pose), which you do lying on your back. The benefits are immense, but it also has certain contraindications for certain people. Still, the benefits far outweigh the contraindications. Just remember to concentrate on your breathing and synchronize your movements while doing the pose.
Instructions
 Start the pose lying flat on your back. Keep both your feet and knees together and breathe normally.
 With an exhalation, arch your back by raising your chin and tilting head your head backwards, till you are resting on the crown of your head. Feel free to use your hands and raise your head to take it back, if need be. Lay your arms by your sides and continue breathing normally.
 Stretch your back and, with another deep exhalation, raise both your legs simultaneously to a 45 or 50 degree angle from your mat.
 Now raise your arms and hold them above your torso and parallel to the floor. See that both your arms and your legs are straight, not bent at the knees or elbows. Continue to breathe normally.
 Your body will now be resting only on your buttocks and on the crown of your head.
 To exit the pose, with a deep exhalation, lower both your arms and your legs to the floor. Lower your back, straighten out and relax.
Benefits
 This asana (pose) is very beneficial for those suffering from diabetes, constipation, indigestion and nervous weakness.
 It exercises all the muscles in the abdominal region, both internal and externally, thus getting rid of a lot of disorders.
 It corrects the pancreatic malfunction.
 Strengthens the spinal cord and corrects disorders of the back.
 Takes away the extra weight of abdominal areas and has significant healing and corrective effects on problems afflicting the waist or belly area, and the buttocks, as well as the hip-joints.
Contraindications
 Those suffering from muscle pull and lumbar sodalities had best avoid.
 Those with High Blood Pressure and lower back aches should practice carefully. Initially, use your hands to raise your legs, but see that while raising your legs you don’t bend your knees.
 Those nursing a spinal injury should do this asana (pose) raising just one leg at a time. This is because, when you raise both your legs upwards, you will be putting undue strain on your spine.

Matsyasana
Yashtikasana
Suggested Pranayams for Thyroid:
Kapalabhatti
Anuloma-Viloma
Ujjayi
Bandhas
Jalandhara Bandha


Basic Yoga asanas for stomach include:
1. Surya Namaskar – sun Salutation
2. Pawanmuktasana – Wind relieving pose
3. Bhujangasana – Cobra pose
4. Dhanurasana – Bow pose
5. Paschimottanasana – Seated head to knees pose
6. Uddiyana Bandha – The Abdominal Lift
7. Dandayamana-Dhanurasana – Standing Bow Pulling Pose
8. Uttanasana – Forward Bend or Extension
9. Sarvangasana
10. Sarvangasana – Shoulderstand

Wednesday, May 13, 2009

काश! हकीकत बन सकता गुजरा जमाना

- वि‍जय कुमार झा

यादें हसीन हों तो उनमें जीना अच्‍छा लगता है, पर उस पेशे में हूं जहां कल की बात आज बासी हो जाती है। सो आज में ही जीने वाला पत्रकार वि‍जय बन कर रह गया हूं। अजय जी का शुक्रि‍या कि‍ उन्‍होंने अतीत में झांकने को प्रेरि‍त कि‍या और मैं कुछ देर के लि‍ए बीते जमाने में लौट गया। मुश्‍कि‍ल तो हुई, पर मजा भी खूब आया। जो समेट पाया, वह लेकर एक बार फि‍र आज में लौट आया हूं।


जब से महानगर (दि‍ल्‍ली) में मशीनी जिंदगी जीने के लि‍ए मजबूर हुआ और टीवी, कंप्‍यूटर, इंटरनेट आदि‍ की सुवि‍धा सुलभ हो गई, बड़े पर्दे पर सि‍नेमा देखने के कम ही मौके मि‍लते हैं। महीनों बाद, कभी-कभार। वैसे, सच कहें तो अब देखने लायक फि‍ल्‍में भी तो कभी-कभार ही बनती हैं। शायद महीनों नहीं, बल्‍कि‍ सालों बाद। बहरहाल, जब कभी भी मल्‍टीप्‍लेक्‍स की लि‍फ्ट चढ़ने का मौका मि‍लता है, गुजरा जमाना याद आता है। स्‍कूल-कालेज वाले दि‍न।
अचानक फि‍ल्‍म देखने का प्रोगाम बनता तो चौकड़ी में पहला सवाल यही उठता था- टि‍कट मि‍ल जाएगा? मैं जि‍स शहर (भागलपुर) में पला-बढ़ा, वहां अभी भी फोन या इंटरनेट से बुकिंग की सुवि‍धा नहीं है। बॉक्‍स ऑफि‍स पर चमकी हुई फि‍ल्‍म के शो के टि‍कट लेना फल पाने (फि‍ल्‍म देखने) से पहले तपस्‍या करने के बराबर था। यह बात अलग थी कि‍ अक्‍सर यह तपस्‍या मेरा कोई दोस्‍त कि‍या करता था और पूरे तीन घंटे ‘फल’ का आनंद हम सब मि‍ल कर लेते थे।
हमारे लि‍ए उन दि‍नों फि‍ल्‍म देखना एक गोपनीय अभि‍यान हुआ करता था। सि‍नेमा हॉल जाने और वहां से नि‍कलने तक इस बात की पूरी कोशि‍श की जाती थी कि‍ कहीं कोई जान-पहचान वाला नहीं दि‍ख जाए, जो घर तक खबर पहुंचा दे। दरअसल, पि‍‍ताजी फि‍ल्‍मों के प्रति‍ दीवानगी को सीधे बच्‍चे की बर्बादी से जोड़ कर देखते थे। यह फि‍ल्‍मों के प्रति‍ समाज के एक तबके में प्रचलि‍त हेय दृष्‍टि‍कोण का नतीजा था। यह तबका फि‍ल्‍म कलाकारों को नाचने-गाने वाले और फि‍ल्‍म को समाज को गलत दि‍शा दि‍खाने वाले माध्‍यम के रूप में लेता था। ऐसी धारणा फि‍ल्‍मों और फि‍ल्‍मी दुनि‍या को देखे-जाने-समझे बि‍ना ही बनी हुई थी कि‍ फि‍ल्‍में भावी पीढ़ी को बि‍गाड़ने का सबसे अच्‍छा जरि‍या हैं। लगभग सभी दोस्‍तों की यही समस्‍या थी, सो सामूहि‍क प्रयास से हम अपने ‘अभि‍यान’ को गोपनीय रखने में अक्‍सर कामयाब हो जाते थे। बहरहाल, आज जब इसका सकारात्‍मक पहलू ढूंढता हूं तो यही लगता है कि‍ चोरी चुपके फि‍ल्‍म देखने का हमारा अभि‍यान कहीं न कहीं हम दोस्‍तों की दोस्‍ती के बंधन को मजबूती ही देता था। स्‍कूल में प्रेमरंजन से मेरी और रूपेश की दोस्‍ती ही फि‍ल्‍म देखने के क्रम में हुई थी। उन लोगों ने क्‍लास बंक कर फि‍ल्‍म देखने का प्रोग्राम बनाया था और उसमें हम दोनों को भी शामि‍ल कर लि‍या था। वहीं से हमारी दोस्‍ती की शुरुआत हुई थी।
उन दि‍नों सि‍नेमा को लेकर समाज का नजरि‍या, समाज को लेकर सि‍नेमा जगत की सोच और बनने वाली फि‍ल्‍में ही अलग नहीं थीं, बल्‍कि‍ फि‍ल्‍में देखने का अंदाज भी अलग था। तीन घंटे की फि‍ल्‍म देखने का मतलब पूरे तीन घंटे मनोरंजन, मनोरंजन और केवल मनोरंजन। हर कोई अपने-अपने अंदाज में ‘पैसा वसूल’ मनोरंजन करता था। कोई सीटी बजा कर, कोई नायकों के कारनामे देखकर, कोई हीरो-हीरोइन का रोमांस देख कर तो कोई कहानी और कि‍रदारों में डूब कर। दर्शक पर्दे पर नायकों के कारनामे से उत्‍साहि‍त होते और खलनायकों पर गुस्‍सा भी करते थे। फि‍ल्‍मों को वास्‍तवि‍कता के काफी करीब रख कर देखा जाता था। फि‍ल्‍में बनाने वाले शायद उसे हकीकत के इतना करीब लाने की कोशि‍श नहीं करते थे, पर दर्शक उसे वास्‍तवि‍कता से जोड़ लेते थे। आज फि‍ल्‍मकार अपनी तरफ से कोशि‍श कर भी दर्शकों को वास्‍तवि‍कता के करीब ले जाने में सफल नहीं हो पाते। शायद इसलि‍ए कि‍ फि‍ल्‍में तकनीकी रूप से वास्‍तवि‍कता के करीब आई हैं, पर कहानी और कि‍रदारों के मोर्चे पर यह करीबी नहीं आई है। यही वजह है कि‍ आज फि‍ल्‍म बनाने वालों को प्रचार पर भारी-भरकम रकम खर्च करनी पड़ रही है और प्रचार के नए-नए तरीके भी खोजने पड़ रहे हैं। इस दौरान फि‍ल्‍मों का व्‍यावसायीकरण (कॉरपोरेटाइजेशन ऑफ फि‍ल्‍म्‍स) जि‍तना बढ़ा है, उतना कुछ नहीं। इसलि‍ए रील लाइफ की सभी रि‍यल चीजें बनावटी लगती हैं।
‘हि‍न्‍दी टाकीज’ की बात गानों की चर्चा के बि‍ना अधूरी रहेगी। यह इसलि‍ए भी क्‍योंकि‍ फि‍ल्‍मों के प्रति‍ मेरी रुचि‍ वि‍कसि‍त होने में गानों की अहम भूमि‍का रही। गाने सुनने के लि‍ए रेडि‍यो एक मात्र सर्वाधि‍क लोकप्रि‍य और सस्‍ता साधन था। घर में ‘डेक’ (आडि‍यो प्‍लेयर) और टीवी आ जाने के बाद भी मैं रेडि‍यो पर ही गाने सुनने का मजा लेता था। वजह यह थी कि‍ हर दौर और मूड के गाने आसानी से सुनने को मि‍ल जाते थे। सुरैया से लेकर यशुदास तक और पंकज उधास से कुमार शानू तक। सुबह बीबीसी सुनने के बाद पि‍ताजी रामचरि‍त मानस का पाठ सुना करते थे। उसके बाद श्रीलंका ब्राडकास्‍टिंग कारपोरेशन के वि‍देश वि‍भाग (सीलोन) से फि‍ल्‍मी गाने सुनने का मेरा दौर शुरू होता था। आठ से नौ तक हर मूड के गाने सुनने के बाद नौ बजे से आधे घंटे तक स्‍थानीय भागलपुर रेडि‍यो स्‍टेशन से ‘गीत र्नि‍झर’ बहा करता था। पौने दस से सवा दस बजे तक पटना स्‍टेशन से गाने आते थे। सुबह के इस सत्र का जहां तक संभव हो सके, मैं पूरा लाभ उठाता था। फि‍र रात को रेडि‍यो नेपाल। इनसे इतर, बेवक्‍त गाने सुनना हो तो वि‍वि‍ध भारती था ही। अब ये सोचने में पसीना मत बहाइए कि‍ मैं पढ़ाई कब करता था। वह मैं कर लि‍या करता था। बहरहाल, गाने सुन कर मैं बालीवुड की वि‍वि‍धता के बारे में सोचने लगता था और मेरा दि‍माग चकरा जाता था। असल जिंदगी की कि‍सी भी स्‍थि‍ति‍ (सि‍चुएशन) की कल्‍पना कीजि‍ए और उससे संबंधि‍त गाना सोचि‍ए, मि‍ल जाएगा। हालांकि‍ अगर सिर्फ बीते दस-बीस साल के गाने तलाशे जाएं तो संभवत: ऐसा नहीं हो, पर पुराने जमाने के गाने वि‍वि‍धता और वास्‍तवि‍कता की इस कसौटी पर पूरी तरह खरे उतरते हैं। बालीवुड के प्रति‍ मेरी सकारात्‍मक सोच वि‍कसि‍त होने में इस सच्‍चाई का काफी योगदान रहा। फि‍र नई आने वाली फि‍ल्‍मों के गाने सुन कर ही हम प्रथमदृष्‍टया यह तय करते थे कि‍ फि‍ल्‍म देखने चलना है या नहीं। अगर चलना है तो मंडली में वि‍चार होता था और फि‍र कार्यक्रम बन जाता था। उन दि‍नों गाने नई फि‍ल्‍मों के प्रचार का भी बड़ा हथि‍यार होते थे। प्रचार मुख्‍य रूप से गली-मोहल्‍लों में लाउडस्‍पीकरों से अनाउंस करवा कर और पोस्‍टर चि‍पका कर कि‍ए जाते थे। लाउडस्‍पीकरों से फि‍ल्‍म के गाने सुनाए जाते थे और बीच-बीच में प्रचार करने वाला शख्‍स फि‍ल्‍म के कलाकारों के बारे में बताता था। पता नहीं, मेरे शहर में अब भी फि‍ल्‍मों का प्रचार ऐसे ही होता है या इसकी जरूरत ही नहीं रह गई है। अब तो साल या दो साल में एक बार जाना होता है और वह भी कुछ दि‍नों के लि‍ए। काश! बीते जमाने को यादों से इतर, हकीकत में जीना मुमकि‍न हो पाता।
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दस पसंदीदा फि‍ल्‍में
बातों बातों में
बावर्ची
तीसरी कसम
गाइड
मेरा नाम जोकर
श्री 420
दोस्‍ती
उमराव जान
लगान
तारे जमीन पर
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रीप्‍ले के लि‍ए यहां भी टुनकी मार सकते हैं
http://chavannichap.blogspot.com/2009/05/blog-post_13.html

Sunday, April 19, 2009

You can also vote to reject

Rule 49 (O) Gives Option Of Not Choosing Any Candidates

Incarcerated candidates filing their nominations in absentia, sitting MPs surfacing only at election time and leaders making/breaking alliances at the drop of a hat — if you have had enough of them, rule 49 (O) — that allows a voter to not vote for any of the candidates — may be what you are looking for.
As per Rule 49 (O) of the Conduct of Election Rules 1961, a voter can register his vote, but not vote for any candidate. The voter needs to fill a form that is available with the presiding officer. While the vote would not be counted, it will be included in the voter turnout figures. Unfortunately, the ‘‘negative’’ vote will have no effect on deciding the winner.
The voter is required to sign in a special register. These votes are not counted and the winner is decided by the valid vote cast. It also helps in controlling proxy voting.

POWER TO SAY NO
49 (O) is a rule in The Conduct of Elections Rules, 1961, under which a person can go to the polling station but not cast his vote if he/she doesn’t like the listed candidates in the area. The vote will not be counted and the winner will be decided on the basis of valid votes
How to use 49 (O) option
Just inform the presiding officer at the poll booth about your decision. The decision is recorded in a register which is signed by the voter

याददाश्‍त बढ़ाने के घरेलू उपाय

- सात दाने बादाम गि‍री शाम के समय कि‍सी कांच के बर्तन में जल डाल कर भि‍गो दें। सुबह उनका छि‍लका हटा कर बारीक पीस लें। यदि‍ आंखें कमजोर हों तो साथ ही चार काली मिर्च पीस लें। अब उसे उलबते हुए ढाई सौ ग्राम दूध में मि‍ला दें। जब तीन उबाल आ जाए तो नीचे उतारकर एक चमच देसी घी और दो चम्‍मच बूरा डाल कर ठंडा कर लें। पीने लायक गर्म रह जाने पर इसे 15 दि‍न से 40 दि‍न तक पीयें। यह दूध दि‍माग और स्‍मरण शक्‍ति‍ की कमजोरी दूर करने में पूर्णत: सक्षम होता है, तथ वीर्य-बल वर्द्धक भी है। - उपरोक्‍त वि‍धि‍ से बादाम का दूध लेना संभव नहीं हो तो सात भि‍गोई हुई बादाम की गि‍रि‍यां छील कर – चार काली र्मि‍च के साथ पीस कर बारीक करके या वैसे ही – एक-एक बादाम को नि‍त्‍य प्रात: खूब चबा-चबा कर खाएं तथा ऊपर से गर्म दूध पी लें। स्‍मरण शक्‍ति‍ बढ़ने के साथ इससे अखों की कमजोरी, आंखों का थकना, आंखों से पानी गि‍रना, आंख आना आदि‍ समस्‍या भी दूर हो जाती है। - तीन ग्राम शंख पुष्‍पी का चूर्ण दूध या मि‍श्री की चासनी के साथ रोज सुबह तीन-चार सप्‍ताह तक – वि‍शेष कर गर्मि‍यों में लेने से स्‍मरण शक्‍ति‍ बढ़ती है।
- - हरी शंख पुष्‍पी (पंचांग) 10 ग्राम घोट-छान कर दूध मि‍ला कर ठंडई की भांति‍ पी सकते हैं। शंख पुष्‍पी सर्वश्रेष्‍ठ रसायन है। - खरबूजे की गि‍री को घी में भुन लें। इसे 5-5 ग्राम सुबह-शाम भोजन के बाद चाक कर खाएं। आठ-दस खजूर रोज दूध में औटा कर पीने से स्‍मरण शक्‍ति‍ बढ़ जाती है। - 250 ग्राम दूध में दो चम्‍मच मुलहठी का चूर्ण डाल कर कुछ दि‍नों तक पीने से लाभ होता है। - सोयाबीन का दूध पीने या सोयाबीन को गेहूं के आटे में डाल कर पकौड1ी बना कर खाने से भी मस्‍ति‍ष्‍क संबंधी वि‍कार दूर होते हैं। - पीपल के पेड़ की थोड़ी-सी छाल सुखा कर पीस लें। इसे दो चम्‍मच शहद या पानी के साथ लें। - गर्मी में दि‍नों में पेठे की मि‍ठाई खाने से क्षीण स्‍मरण शक्‍ति‍ ठीक हो जाती है। - 500 ग्राम गाय के कच्‍चे ताजा दूध में शहद मि‍ला कर या फीका यूं ही पीने से स्‍मरण शक्‍ति‍ बढ़ती है। - लीची का रस दो चममच, पपीते का रसस आधा कप, आम का रस आधा कप तथा फालसे का रस दो चम्‍मच- इन सबाके मि‍ला कर सेवन करने से स्‍मरण शक्‍ति‍ बढ़ती है।
- रोज एक कप चुकंदर का रस पीने से स्‍मरण शक्‍ति‍ बढ़ती है, मस्‍ति‍ष्‍क संबंधी वि‍कार दूर होते हैं। - सुबह खाली पेट दो आंवले का मुरब्‍बा खाएं और ऊपर से पानी या दूध का प्रयोग नहीं करें। - माथे, कनपटी, खोपड़ी तथा पैरों के तलवों पर गाय के घी की मालि‍श रोज 10 मि‍नट तक करने से मस्‍ति‍ष्‍क की दुर्बलता का नाश होता है। - 20 ग्राम कद़दू (पका हुआ) को बि‍ना भुने नि‍त्‍य खाने से लाभ होता है। - हरे गेहूं की बाली का रस रोज एक चम्‍मच सेवन करने से लाभ होता है। - दो चम्‍मच पके आम का रस, एक चम्‍मच अदरक का रस तथा एक चम्‍मच तुलसी के पत्‍तों का रस- इन सब को मि‍ला कर थोड़े से शहद के साथ सेवन करने से मस्‍ति‍ष्‍क संबंधी दुर्ब्‍लता दूर होती है। - बेल मस्‍ति‍ष्‍क के लि‍ए सर्वोत्‍तम फल है। बेल का मुरब्‍बा 15 दि‍नों तक खाने से स्‍मरण शक्‍ति‍ तीव्र होती है। - चार ग्राम दालचीनी का चूर्ण ताजे पानी के साथ सेवन करने से भी लाभ होता है। - एक चम्‍मच सौंफ पीस कर शहद में मि‍ला कर सुबह – शाम चाटने से भी लाभ होता है। -प्रति‍दि‍न दो अंजीर चबा चबा कर खाने से भी स्‍मरण शक्‍ति‍ तेज होती है। -पि‍स्‍ता एवं ति‍ल की बर्फीखाने से भी मस्ति‍ष्‍क की कमजोरी दूर होती है।

Sunday, April 12, 2009

लड़ाई लोकतंत्र की अच्‍छाइयों पर हावी हुई बुराइयों से है


- वि‍जय कुमार झा
मत केवल दस फीसदी लोगों का मि‍ला, पर सत्‍ता हाथ में आ गई। देश के बहुतेरे राज्‍यों में इतना या इससे कम मत पाने वाली पार्टियां सरकार चला रही हैं। मात्र एक वि‍धानसभा क्षेत्र के लोगों का प्रति‍नि‍धि‍त्‍व करने वाले नि‍र्दलीय वि‍धायक को पूरे राज्‍य (झारखंड) पर राज करते भी हम देख चुके हैं। कोई पार्टी चुनिंदा करीब आधा दर्जन राज्‍यों की सारी संसदीय सीटें जीत ले तो केंद्र में सरकार बनाने के उसके दावे पर कोई अंगुली नहीं उठा सकता। बाकी करीब दो दर्जन राज्‍यों की जनता के मत कोई मायने नहीं रखते। बहुसंख्‍य जनता द्वारा नकार दी जाने वाली पार्टि‍यां एक साथ आकर सरकार बना कर जनादेश को अंगूठा दि‍खाने में भी जरा शर्म-संकोच महसूस नहीं करतीं। 1999 में अंति‍म क्षणों में संसद में बहुजन समाज पार्टी ने पाला बदला और कांग्रेस के साथ जाकर वि‍श्‍वास मत के खि‍लाफ मतदान कि‍या। नतीजा रहा बस एक वोट से अटल बि‍हारी वाजपेयी सरकार का गि‍र जाना। याद रहे इस सरकार को अग्‍नि‍परीक्षा अन्‍नाद्रमुक के स्‍वार्थ की वजह से देनी पडी थी, तो इसकी शहादत बसपा के स्‍वार्थ के चलते हुई।नए चुनाव हुए और दो पार्टि‍यों के स्‍वार्थ के चलते बेचारी जनता के अरबों रुपये होम हो गए। बात यहीं तक सीमि‍त नहीं है। वि‍धायि‍का में दागी-भ्रष्‍टाचारी और अनपढ. सांसदों की भरमार होती जा रही है।
कुल मि‍ला कर कहा जाए तो लोकतंत्र की अच्‍छाइयों पर उसकी बुराइयां हावी हो गई हैं। इसलि‍ए जनता का, जनता के लि‍ए और जनता के द्वारा शासन वाली यह व्‍यवस्‍था वास्‍तव में न तो जनता का रह गया है, न उसके लि‍ए और न उसके द्वारा। ऐसा नहीं कि‍जनता को इसका अहसास नहीं है। पब्‍लि‍क सब जानती है, पर नेताओं को कोसते हुए, खुद को असहाय महसूस करते हुए उसी ढर्रे पर लोकतंत्र को धकेलती जा रही है। इस गलती को सुधारने का मौका अभी ही है। पैसा, जाति‍, धर्म आदि‍के प्रभाव में आकर वोट डालने या सि‍स्‍टम को कोसते हुए मतदान के दि‍न घर बैठे रहने की आदत से बाज आना होगा। उम्‍मीदवार को इस कसौटी पर परखना होगा कि‍उसमें जनता का नेता बनने की काबि‍लि‍यत है भी या नहीं। ठीक वैसे ही, जैसे बेटे के लि‍ए बहू या बेटी के लि‍ए दामाद चुनते वक्‍त परखते हैं। घर-परि‍वार हो या देश-समाज, दोनों मूल रूप से एक जैसे सि‍द्धांतों से ही चलते हैं। जि‍स तरह परि‍वार के मुखि‍या की कामयाबी हर सदस्‍य को मूलभूत जरूरतों के साथ शि‍क्षा, सुरक्षा, प्‍यार और अपनापन देने में नि‍हि‍त है, वैसे ही देश के नेता की कामयाबी जनता को जीने के बेहतर मौके उपलब्‍ध कराने और सुख-दुख में साथी बनते हुए आगे बढाने में ही नि‍हि‍त है। ये गुण जि‍स उम्‍मीदवार में नजर आते हों, सि‍र्फ उन्‍हें ही अपना जनप्रति‍नि‍धि‍बनाने का संकल्‍प लेना ही होगा। यह इसलि‍ए भी जरूरी है क्‍योंकि‍हमें अपना जनप्रति‍नि‍धि‍वापस बुलाने का हक नहीं है। एक बार चुन लि‍या तो पांच साल कुछ नहीं कर सकते। सो, अभी ही ठोक-बजा कर फैसला लेना होगा। अपने बीच से ही उम्‍मीदवार चुनना होगा। कोई पार्टी नाकाबि‍ल उम्‍मीदवार थोपे तो शुरू से ही वि‍रोध दर्ज कराना होगा। उसे अपना फैसला बदलने के लि‍ए मजबूर करना होगा। अंत तक यह संभव नहीं हुआ तो मतदान के दि‍न कि‍सी भी उम्‍मीदवार के पक्ष में वोट नहीं डालने का वि‍कल्‍प आजमाने की भी सोच सकते हैं। संवि‍धान से मतदाताओं को यह हक मि‍ला हुआ है। आखि‍री वि‍कल्‍प के तौर पर इसे आजमाने से हि‍चकना नहीं चाहि‍ए। हम अपना नेता चुन रहे हैं, सही फैसला लेने के लि‍ए हमें ही आगे आना होगा। तो लेते हैं संकल्‍प। लोकतंत्र के सर्वाधि‍क सुंदर शासन व्‍यवस्‍था होने की परि‍भाषा सार्थक करने का।
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इस लेख और लोगों के वि‍चार और चुनाव सुधारों पर बहुत कुछ पढ़ने-जानने के लि‍ए यहां टुनकी मार सकते हैं
http://www.janjagran.co.in/News/_32-Blogs-.html