Sunday, April 12, 2009

लड़ाई लोकतंत्र की अच्‍छाइयों पर हावी हुई बुराइयों से है


- वि‍जय कुमार झा
मत केवल दस फीसदी लोगों का मि‍ला, पर सत्‍ता हाथ में आ गई। देश के बहुतेरे राज्‍यों में इतना या इससे कम मत पाने वाली पार्टियां सरकार चला रही हैं। मात्र एक वि‍धानसभा क्षेत्र के लोगों का प्रति‍नि‍धि‍त्‍व करने वाले नि‍र्दलीय वि‍धायक को पूरे राज्‍य (झारखंड) पर राज करते भी हम देख चुके हैं। कोई पार्टी चुनिंदा करीब आधा दर्जन राज्‍यों की सारी संसदीय सीटें जीत ले तो केंद्र में सरकार बनाने के उसके दावे पर कोई अंगुली नहीं उठा सकता। बाकी करीब दो दर्जन राज्‍यों की जनता के मत कोई मायने नहीं रखते। बहुसंख्‍य जनता द्वारा नकार दी जाने वाली पार्टि‍यां एक साथ आकर सरकार बना कर जनादेश को अंगूठा दि‍खाने में भी जरा शर्म-संकोच महसूस नहीं करतीं। 1999 में अंति‍म क्षणों में संसद में बहुजन समाज पार्टी ने पाला बदला और कांग्रेस के साथ जाकर वि‍श्‍वास मत के खि‍लाफ मतदान कि‍या। नतीजा रहा बस एक वोट से अटल बि‍हारी वाजपेयी सरकार का गि‍र जाना। याद रहे इस सरकार को अग्‍नि‍परीक्षा अन्‍नाद्रमुक के स्‍वार्थ की वजह से देनी पडी थी, तो इसकी शहादत बसपा के स्‍वार्थ के चलते हुई।नए चुनाव हुए और दो पार्टि‍यों के स्‍वार्थ के चलते बेचारी जनता के अरबों रुपये होम हो गए। बात यहीं तक सीमि‍त नहीं है। वि‍धायि‍का में दागी-भ्रष्‍टाचारी और अनपढ. सांसदों की भरमार होती जा रही है।
कुल मि‍ला कर कहा जाए तो लोकतंत्र की अच्‍छाइयों पर उसकी बुराइयां हावी हो गई हैं। इसलि‍ए जनता का, जनता के लि‍ए और जनता के द्वारा शासन वाली यह व्‍यवस्‍था वास्‍तव में न तो जनता का रह गया है, न उसके लि‍ए और न उसके द्वारा। ऐसा नहीं कि‍जनता को इसका अहसास नहीं है। पब्‍लि‍क सब जानती है, पर नेताओं को कोसते हुए, खुद को असहाय महसूस करते हुए उसी ढर्रे पर लोकतंत्र को धकेलती जा रही है। इस गलती को सुधारने का मौका अभी ही है। पैसा, जाति‍, धर्म आदि‍के प्रभाव में आकर वोट डालने या सि‍स्‍टम को कोसते हुए मतदान के दि‍न घर बैठे रहने की आदत से बाज आना होगा। उम्‍मीदवार को इस कसौटी पर परखना होगा कि‍उसमें जनता का नेता बनने की काबि‍लि‍यत है भी या नहीं। ठीक वैसे ही, जैसे बेटे के लि‍ए बहू या बेटी के लि‍ए दामाद चुनते वक्‍त परखते हैं। घर-परि‍वार हो या देश-समाज, दोनों मूल रूप से एक जैसे सि‍द्धांतों से ही चलते हैं। जि‍स तरह परि‍वार के मुखि‍या की कामयाबी हर सदस्‍य को मूलभूत जरूरतों के साथ शि‍क्षा, सुरक्षा, प्‍यार और अपनापन देने में नि‍हि‍त है, वैसे ही देश के नेता की कामयाबी जनता को जीने के बेहतर मौके उपलब्‍ध कराने और सुख-दुख में साथी बनते हुए आगे बढाने में ही नि‍हि‍त है। ये गुण जि‍स उम्‍मीदवार में नजर आते हों, सि‍र्फ उन्‍हें ही अपना जनप्रति‍नि‍धि‍बनाने का संकल्‍प लेना ही होगा। यह इसलि‍ए भी जरूरी है क्‍योंकि‍हमें अपना जनप्रति‍नि‍धि‍वापस बुलाने का हक नहीं है। एक बार चुन लि‍या तो पांच साल कुछ नहीं कर सकते। सो, अभी ही ठोक-बजा कर फैसला लेना होगा। अपने बीच से ही उम्‍मीदवार चुनना होगा। कोई पार्टी नाकाबि‍ल उम्‍मीदवार थोपे तो शुरू से ही वि‍रोध दर्ज कराना होगा। उसे अपना फैसला बदलने के लि‍ए मजबूर करना होगा। अंत तक यह संभव नहीं हुआ तो मतदान के दि‍न कि‍सी भी उम्‍मीदवार के पक्ष में वोट नहीं डालने का वि‍कल्‍प आजमाने की भी सोच सकते हैं। संवि‍धान से मतदाताओं को यह हक मि‍ला हुआ है। आखि‍री वि‍कल्‍प के तौर पर इसे आजमाने से हि‍चकना नहीं चाहि‍ए। हम अपना नेता चुन रहे हैं, सही फैसला लेने के लि‍ए हमें ही आगे आना होगा। तो लेते हैं संकल्‍प। लोकतंत्र के सर्वाधि‍क सुंदर शासन व्‍यवस्‍था होने की परि‍भाषा सार्थक करने का।
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http://www.janjagran.co.in/News/_32-Blogs-.html