Sunday, April 19, 2009

You can also vote to reject

Rule 49 (O) Gives Option Of Not Choosing Any Candidates

Incarcerated candidates filing their nominations in absentia, sitting MPs surfacing only at election time and leaders making/breaking alliances at the drop of a hat — if you have had enough of them, rule 49 (O) — that allows a voter to not vote for any of the candidates — may be what you are looking for.
As per Rule 49 (O) of the Conduct of Election Rules 1961, a voter can register his vote, but not vote for any candidate. The voter needs to fill a form that is available with the presiding officer. While the vote would not be counted, it will be included in the voter turnout figures. Unfortunately, the ‘‘negative’’ vote will have no effect on deciding the winner.
The voter is required to sign in a special register. These votes are not counted and the winner is decided by the valid vote cast. It also helps in controlling proxy voting.

POWER TO SAY NO
49 (O) is a rule in The Conduct of Elections Rules, 1961, under which a person can go to the polling station but not cast his vote if he/she doesn’t like the listed candidates in the area. The vote will not be counted and the winner will be decided on the basis of valid votes
How to use 49 (O) option
Just inform the presiding officer at the poll booth about your decision. The decision is recorded in a register which is signed by the voter

याददाश्‍त बढ़ाने के घरेलू उपाय

- सात दाने बादाम गि‍री शाम के समय कि‍सी कांच के बर्तन में जल डाल कर भि‍गो दें। सुबह उनका छि‍लका हटा कर बारीक पीस लें। यदि‍ आंखें कमजोर हों तो साथ ही चार काली मिर्च पीस लें। अब उसे उलबते हुए ढाई सौ ग्राम दूध में मि‍ला दें। जब तीन उबाल आ जाए तो नीचे उतारकर एक चमच देसी घी और दो चम्‍मच बूरा डाल कर ठंडा कर लें। पीने लायक गर्म रह जाने पर इसे 15 दि‍न से 40 दि‍न तक पीयें। यह दूध दि‍माग और स्‍मरण शक्‍ति‍ की कमजोरी दूर करने में पूर्णत: सक्षम होता है, तथ वीर्य-बल वर्द्धक भी है। - उपरोक्‍त वि‍धि‍ से बादाम का दूध लेना संभव नहीं हो तो सात भि‍गोई हुई बादाम की गि‍रि‍यां छील कर – चार काली र्मि‍च के साथ पीस कर बारीक करके या वैसे ही – एक-एक बादाम को नि‍त्‍य प्रात: खूब चबा-चबा कर खाएं तथा ऊपर से गर्म दूध पी लें। स्‍मरण शक्‍ति‍ बढ़ने के साथ इससे अखों की कमजोरी, आंखों का थकना, आंखों से पानी गि‍रना, आंख आना आदि‍ समस्‍या भी दूर हो जाती है। - तीन ग्राम शंख पुष्‍पी का चूर्ण दूध या मि‍श्री की चासनी के साथ रोज सुबह तीन-चार सप्‍ताह तक – वि‍शेष कर गर्मि‍यों में लेने से स्‍मरण शक्‍ति‍ बढ़ती है।
- - हरी शंख पुष्‍पी (पंचांग) 10 ग्राम घोट-छान कर दूध मि‍ला कर ठंडई की भांति‍ पी सकते हैं। शंख पुष्‍पी सर्वश्रेष्‍ठ रसायन है। - खरबूजे की गि‍री को घी में भुन लें। इसे 5-5 ग्राम सुबह-शाम भोजन के बाद चाक कर खाएं। आठ-दस खजूर रोज दूध में औटा कर पीने से स्‍मरण शक्‍ति‍ बढ़ जाती है। - 250 ग्राम दूध में दो चम्‍मच मुलहठी का चूर्ण डाल कर कुछ दि‍नों तक पीने से लाभ होता है। - सोयाबीन का दूध पीने या सोयाबीन को गेहूं के आटे में डाल कर पकौड1ी बना कर खाने से भी मस्‍ति‍ष्‍क संबंधी वि‍कार दूर होते हैं। - पीपल के पेड़ की थोड़ी-सी छाल सुखा कर पीस लें। इसे दो चम्‍मच शहद या पानी के साथ लें। - गर्मी में दि‍नों में पेठे की मि‍ठाई खाने से क्षीण स्‍मरण शक्‍ति‍ ठीक हो जाती है। - 500 ग्राम गाय के कच्‍चे ताजा दूध में शहद मि‍ला कर या फीका यूं ही पीने से स्‍मरण शक्‍ति‍ बढ़ती है। - लीची का रस दो चममच, पपीते का रसस आधा कप, आम का रस आधा कप तथा फालसे का रस दो चम्‍मच- इन सबाके मि‍ला कर सेवन करने से स्‍मरण शक्‍ति‍ बढ़ती है।
- रोज एक कप चुकंदर का रस पीने से स्‍मरण शक्‍ति‍ बढ़ती है, मस्‍ति‍ष्‍क संबंधी वि‍कार दूर होते हैं। - सुबह खाली पेट दो आंवले का मुरब्‍बा खाएं और ऊपर से पानी या दूध का प्रयोग नहीं करें। - माथे, कनपटी, खोपड़ी तथा पैरों के तलवों पर गाय के घी की मालि‍श रोज 10 मि‍नट तक करने से मस्‍ति‍ष्‍क की दुर्बलता का नाश होता है। - 20 ग्राम कद़दू (पका हुआ) को बि‍ना भुने नि‍त्‍य खाने से लाभ होता है। - हरे गेहूं की बाली का रस रोज एक चम्‍मच सेवन करने से लाभ होता है। - दो चम्‍मच पके आम का रस, एक चम्‍मच अदरक का रस तथा एक चम्‍मच तुलसी के पत्‍तों का रस- इन सब को मि‍ला कर थोड़े से शहद के साथ सेवन करने से मस्‍ति‍ष्‍क संबंधी दुर्ब्‍लता दूर होती है। - बेल मस्‍ति‍ष्‍क के लि‍ए सर्वोत्‍तम फल है। बेल का मुरब्‍बा 15 दि‍नों तक खाने से स्‍मरण शक्‍ति‍ तीव्र होती है। - चार ग्राम दालचीनी का चूर्ण ताजे पानी के साथ सेवन करने से भी लाभ होता है। - एक चम्‍मच सौंफ पीस कर शहद में मि‍ला कर सुबह – शाम चाटने से भी लाभ होता है। -प्रति‍दि‍न दो अंजीर चबा चबा कर खाने से भी स्‍मरण शक्‍ति‍ तेज होती है। -पि‍स्‍ता एवं ति‍ल की बर्फीखाने से भी मस्ति‍ष्‍क की कमजोरी दूर होती है।

Sunday, April 12, 2009

लड़ाई लोकतंत्र की अच्‍छाइयों पर हावी हुई बुराइयों से है


- वि‍जय कुमार झा
मत केवल दस फीसदी लोगों का मि‍ला, पर सत्‍ता हाथ में आ गई। देश के बहुतेरे राज्‍यों में इतना या इससे कम मत पाने वाली पार्टियां सरकार चला रही हैं। मात्र एक वि‍धानसभा क्षेत्र के लोगों का प्रति‍नि‍धि‍त्‍व करने वाले नि‍र्दलीय वि‍धायक को पूरे राज्‍य (झारखंड) पर राज करते भी हम देख चुके हैं। कोई पार्टी चुनिंदा करीब आधा दर्जन राज्‍यों की सारी संसदीय सीटें जीत ले तो केंद्र में सरकार बनाने के उसके दावे पर कोई अंगुली नहीं उठा सकता। बाकी करीब दो दर्जन राज्‍यों की जनता के मत कोई मायने नहीं रखते। बहुसंख्‍य जनता द्वारा नकार दी जाने वाली पार्टि‍यां एक साथ आकर सरकार बना कर जनादेश को अंगूठा दि‍खाने में भी जरा शर्म-संकोच महसूस नहीं करतीं। 1999 में अंति‍म क्षणों में संसद में बहुजन समाज पार्टी ने पाला बदला और कांग्रेस के साथ जाकर वि‍श्‍वास मत के खि‍लाफ मतदान कि‍या। नतीजा रहा बस एक वोट से अटल बि‍हारी वाजपेयी सरकार का गि‍र जाना। याद रहे इस सरकार को अग्‍नि‍परीक्षा अन्‍नाद्रमुक के स्‍वार्थ की वजह से देनी पडी थी, तो इसकी शहादत बसपा के स्‍वार्थ के चलते हुई।नए चुनाव हुए और दो पार्टि‍यों के स्‍वार्थ के चलते बेचारी जनता के अरबों रुपये होम हो गए। बात यहीं तक सीमि‍त नहीं है। वि‍धायि‍का में दागी-भ्रष्‍टाचारी और अनपढ. सांसदों की भरमार होती जा रही है।
कुल मि‍ला कर कहा जाए तो लोकतंत्र की अच्‍छाइयों पर उसकी बुराइयां हावी हो गई हैं। इसलि‍ए जनता का, जनता के लि‍ए और जनता के द्वारा शासन वाली यह व्‍यवस्‍था वास्‍तव में न तो जनता का रह गया है, न उसके लि‍ए और न उसके द्वारा। ऐसा नहीं कि‍जनता को इसका अहसास नहीं है। पब्‍लि‍क सब जानती है, पर नेताओं को कोसते हुए, खुद को असहाय महसूस करते हुए उसी ढर्रे पर लोकतंत्र को धकेलती जा रही है। इस गलती को सुधारने का मौका अभी ही है। पैसा, जाति‍, धर्म आदि‍के प्रभाव में आकर वोट डालने या सि‍स्‍टम को कोसते हुए मतदान के दि‍न घर बैठे रहने की आदत से बाज आना होगा। उम्‍मीदवार को इस कसौटी पर परखना होगा कि‍उसमें जनता का नेता बनने की काबि‍लि‍यत है भी या नहीं। ठीक वैसे ही, जैसे बेटे के लि‍ए बहू या बेटी के लि‍ए दामाद चुनते वक्‍त परखते हैं। घर-परि‍वार हो या देश-समाज, दोनों मूल रूप से एक जैसे सि‍द्धांतों से ही चलते हैं। जि‍स तरह परि‍वार के मुखि‍या की कामयाबी हर सदस्‍य को मूलभूत जरूरतों के साथ शि‍क्षा, सुरक्षा, प्‍यार और अपनापन देने में नि‍हि‍त है, वैसे ही देश के नेता की कामयाबी जनता को जीने के बेहतर मौके उपलब्‍ध कराने और सुख-दुख में साथी बनते हुए आगे बढाने में ही नि‍हि‍त है। ये गुण जि‍स उम्‍मीदवार में नजर आते हों, सि‍र्फ उन्‍हें ही अपना जनप्रति‍नि‍धि‍बनाने का संकल्‍प लेना ही होगा। यह इसलि‍ए भी जरूरी है क्‍योंकि‍हमें अपना जनप्रति‍नि‍धि‍वापस बुलाने का हक नहीं है। एक बार चुन लि‍या तो पांच साल कुछ नहीं कर सकते। सो, अभी ही ठोक-बजा कर फैसला लेना होगा। अपने बीच से ही उम्‍मीदवार चुनना होगा। कोई पार्टी नाकाबि‍ल उम्‍मीदवार थोपे तो शुरू से ही वि‍रोध दर्ज कराना होगा। उसे अपना फैसला बदलने के लि‍ए मजबूर करना होगा। अंत तक यह संभव नहीं हुआ तो मतदान के दि‍न कि‍सी भी उम्‍मीदवार के पक्ष में वोट नहीं डालने का वि‍कल्‍प आजमाने की भी सोच सकते हैं। संवि‍धान से मतदाताओं को यह हक मि‍ला हुआ है। आखि‍री वि‍कल्‍प के तौर पर इसे आजमाने से हि‍चकना नहीं चाहि‍ए। हम अपना नेता चुन रहे हैं, सही फैसला लेने के लि‍ए हमें ही आगे आना होगा। तो लेते हैं संकल्‍प। लोकतंत्र के सर्वाधि‍क सुंदर शासन व्‍यवस्‍था होने की परि‍भाषा सार्थक करने का।
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इस लेख और लोगों के वि‍चार और चुनाव सुधारों पर बहुत कुछ पढ़ने-जानने के लि‍ए यहां टुनकी मार सकते हैं
http://www.janjagran.co.in/News/_32-Blogs-.html

असल क्रांति‍ तो ये है


-वि‍जय कुमार झा
यूपी के राजेंद्र को भला कहां अहसास रहा होगा कि‍ एक दि‍हाड़ी मजदूर की
बेटी में इतनी हि‍म्‍मत होगी। वह तो यही समझ रहा था कि‍ उसका पि‍ता
हीरालाल उसके होने वाले ससुर से 30 हजार रुपये मांग रहा है तो आगे ये रकम
उसी के काम आएगी। पर ये क्‍या। कंचन ने फेरे से ऐन पहले दहेज मांगे जाने
की बात सुनी तो शादी से ही इन्‍कार कर दि‍या। उसने सभी बाराति‍यों को
बैरंग लौट जाने को कहा और खुद थाने चली गई। दूल्‍हे राजेंद्र व उसके
पि‍ता को हवालात की हवा खि‍लाने। कंचन के पि‍ता श्रीपाल को थोड़ी देर के
लि‍ए लगा कि‍ उसकी बेटी समाज में कुल-खानदान की नाक कटवा रही है। पर बाद
में उसे अपनी बेटी पर गर्व हुआ। आज कंचन लखनऊ के पास के इलाके बंथाड़ा
में दहेज के मारे अनेक बाप-बेटि‍यों के लि‍ए रोल माडल बनी हुई है।
यह कहानी पटना के पास दीघा के कंचन की है। रि‍श्‍ते में कंचन की बुआ लगने
वाली एक महि‍ला ने उसके लि‍ए रि‍श्‍ता ढूंढा था। 15 साल के कंचन का होने
वाला दूल्‍हा 70 साल का रि‍टायर्ड सरकारी कर्मचारी था। कंचन को कि‍सी ने
इस बात की भनक तक नहीं लगने दी थी। उसे तो शादी के मंडप में आकर ही यह
पता चला। उसने दूल्‍हे को देखते ही शादी से इन्‍कार कर दि‍या और मंडप से
भाग गई। इस कंचन के कि‍स्‍से भी कई लड़कि‍यों के लि‍ए प्रेरणास्रोत बने।
पटना के पास ही फुलवारीशरीफ के एक गांव की पूनम की कहानी भी कुछ ऐसी ही
है। पूनम को शादी से कुछ ही क्षण पता चला कि‍ उसका दूल्‍हा शराबी है।
उसने शादी से इन्‍कार कर दि‍या। उसके पि‍ता ने भी उसका साथ दि‍या।
पि‍छले कुछ महीनों में बि‍हार के कई गांवों में ऐसा हुआ कि‍ शराबी
दूल्‍हे को शादी से ऐन पहले दुल्‍हन ने लौटा दि‍या या फि‍र बेमेल लड़के
से शादी करने से लड़की ने इन्‍कार कर दि‍या। कुछ साल पहले तक ऐसा सोचा भी
नहीं जा सकता था। यह धीरे-धीरे आ रही एक क्रांति‍ है। ऐसी क्रांति‍ जो
महि‍लाओं को अपनी लड़ाई खुद लड़ने के लि‍ए तैयार कर रही है। इसका सबसे
सुखद पहलू यह है कि‍ इस क्रांति‍ की नायि‍काएं दि‍ल्‍ली-मुंबई जैसे बड़े
शहरों की संभ्रांत महि‍लाएं नहीं हैं, बल्‍कि‍ ये नायि‍काएं पटना, लखनऊ
जैसे छोटे शहरों के छोटे गांव-कस्‍बों में उभर रही हैं। उन गांवों में
जहां भारत बसता है। जहां से तरक्‍की दूर ही भागती है। और जहां के लोगों
के पास जिंदगी काटने तक का पूरा इंतजाम नहीं है। यानी यह क्रांति‍ पूरे
भारत की और पूरे भारत के लि‍ए है।
बि‍हार की बात करें तो महि‍लाएं हर मामले में पुरुषों से पीछे हैं।
प्रति‍ हजार पुरुषों पर उनकी संख्‍या 921 है। उनकी आबादी करीब चार करोड़
है, जबकि‍ पुरुषों की संख्‍या लगभग साढ़े चार करोड़ है। महि‍लाओं की
साक्षरता दर तो पुरुषों की तुलना में लगभग आधी है। इन बातों में कम होने
के बावजूद वे पुरुषों से पीछे नहीं रहना चाहती हैं। अब उनके लि‍ए भी
जमाना बदल रहा है। मानसि‍क रूप से बीमार लड़के से शादी से इन्‍कार करने
वाली पुष्‍पा कहती है- मैंने अपने फैसले से न केवल खुद को, बल्कि‍ अपने
परि‍वार को भी मुसीबतों से भी बचा लि‍या। उसे खुशी है कि‍ उसके फैसले में
उसे परि‍वार और समाज का पूरा साथ मि‍ला। अब पुष्‍पा ने शादी से पहले
लड़के को खुद परखने का फैसला कि‍या है। इससे पहले यह ‘हक’ लड़के वालों को
होता था। वे शादी से पहले लड़की को देखते-जांचते और फि‍र मामूली-सी कि‍सी
बात पर शादी से मना भी कर देते। पर अब यह अधि‍कार लड़कि‍यां भी आजमाने
लगी हैं।
यह सही मायने में महि‍लाओं का सशक्‍तीकरण है। और यह संभव हुआ है बदलाव की
बयार गांव-गांव तक पहुंचने से। पुरानी शास्‍त्रीय मान्‍यताओं के मुताबि‍क
औरत जीवन भर बंधन में, कि‍सी के अंदर रहती है। शास्‍त्रों में कहा गया है
कि‍ बचपन में लड़की पि‍ता के अधीन रहती है, जवान होने पर पति‍ के आधीन हो
जाती है और प्रौढ़ावस्‍था में उसे बेटे के अंदर रहना पड़ता है। यह
मान्‍यता वजूद खोने लगी है। वर्षों पहले शुरू कि‍ए गए सामाजि‍क सुधार का
असर दि‍खने लगा है। सरकार-समाज के सहयोग और तकनीक के प्रचार-प्रसार के
चलते खुले वि‍चारों की हवा अब सुदूर गांवों तक भी पहुंच रही है। नतीजा
महि‍लाएं बंधन तोड़ने के लि‍ए छटपटाने लगी हैं। उन्‍हें कानूनी संरक्षण
देकर सरकार ने उनका साथ दि‍या और समाज को भी उनका साथ देने के लि‍ए तैयार
होना पड़ रहा है।